Monday, October 12, 2015

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Friday, October 2, 2015

SECRET OF ASHOKA



महान सम्राट अशोक के 9 रहस्यमय रत्न, जानिए उनका रहस्य

  9 रत्नों की गुप्त पुस्तक : अब सवाल यह उठता है कि सम्राट अशोक के साथ वे कौन 9 लोग थे जिनके बारे में कहा जाता है कि उनमें से प्रत्येक के पास अपने-अपने ज्ञान की विशेषता थी अर्थात उनमें से प्रत्येक विशेष ज्ञान से युक्त था और अंत में सम्राट अशोक ने उनके ज्ञान को दुनिया से छुपाकर रखा।

वे ही लोग थे जिन्होंने बड़े-बड़े स्तूप बनवाए और जिन्होंने विज्ञान और टेक्नोलॉजी में भी भारत को समृद्ध बनाया। कहा जाता है कि उनके ज्ञान को एक पुस्तक के रूप से संग्रहीत किया गया था। जिस पुस्तक को किसी विशेष व्यक्ति को सुपुर्द किया गया, उसने पीढ़ी-दर-पीढ़ी उस पुस्तक या उसके ज्ञान को आगे फैलाया। हालांकि यह रहस्य आज भी बरकरार है।

नौ रत्नों का कार्य : ऐसा माना जाता है कि सम्राट अशोक ने प्रमुख 9 लोगों की एक ऐसी संस्था बनाई हुई थी जिन्हें कभी सार्वजनिक तौर पर उपस्थित नहीं किया गया और उनके बारे में लोगों को कम ही जानकारी थी। यह कहना चाहिए कि आमजन महज यही जानता था कि सम्राट के 9 रत्न हैं जिनके कारण ही सम्राट शक्तिशाली है।
इन रहस्यमय 9 लोगों का कार्य ऐसी जानकारियों की विद्या को बचाकर रखना था, जो अगर किसी के हाथ लग जाए तो सृष्टि का विनाश कर सकती है।
बहुत से लोगों का मानना था कि सम्राट अशोक की यह रहस्यमय संस्था धरती पर मौजूद अन्य किसी भी संस्था से ज्यादा शक्तिशाली थी जिसमें बेहतरीन वैज्ञानिक और विचारक शामिल थे।










अशोक का निधन कहां हुआ? : यह तो पता चलता है कि सम्राट अशोक का निधन 232 ईसा पूर्व हुआ था लेकिन उनका निधन कहां और कैसे हुआ यह थोड़ा कठिन है।



तिब्बती परंपरा के अनुसार उसका देहावसान तक्षशिला में हुआ। उनके एक शिलालेख के अनुसार अशोक का अंतिम कार्य भिक्षु संघ में फूट डालने की निंदा करना था। संभवत: यह घटना बौद्धों की तीसरी संगीति के बाद की है। सिंहली इतिहास ग्रंथों के अनुसार तीसरी संगीति अशोक के राज्यकाल में पाटलिपुत्र में हुई थी।
भारत की अर्थव्यवस्था : नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री डॉ. अमर्त्य सेन के अनुसार 'सम्राट अशोक के काल में दुनिया की अर्थव्यवस्था में भारत की भागीदारी 35% थी और सम्राट अशोक के काल में भारत जागतिक (ग्लोबल) महाशक्ति था।' जब मुगल और अंग्रेज आए, तब तक भारत की भागीदारी 23% थी और जब 1947 में अंग्रेज देश छोड़कर गए तब 4 फीसदी थी। दोनों ने ही भारत को लूटकर अरब और यूरोप को समृद्ध बनाया और आज भारत में अफ्रीका के बाद सबसे ज्यादा गरीब लोग रहते हैं।
Gold
औपनि‍वेशि‍क युग (1773-1947) के दौरान ब्रि‍टि‍श भारत से सस्‍ती दरों पर कच्‍ची सामग्री खरीदा करते थे और तैयार माल भारतीय बाजारों में सामान्‍य मूल्‍य से कहीं अधि‍क उच्‍चतर कीमत पर बेचते थे जि‍सके परि‍णामस्‍वरूप स्रोतों का द्धि‍मार्गी ह्रास होता था। इस अवधि‍ के दौरान वि‍श्‍व की आय में भारत का हि‍स्‍सा 1700 ई. के 22.3 प्रति‍शत से गि‍रकर 1952 में 3.8 प्रति‍शत रह गया।
अशोक के काल में भारत में जातिवाद नहीं था। उस काल में जनसंख्या भी कम थी तो जातिविहीन शील- संपन्न गुणों से उच्च आदर्श विचारों का समाज था। गुप्तकाल में इस तरह के समाज को और बढ़ावा मिला। हर्षवर्धन के काल तक यह सिलसिला चला। फिर भारत के सीमावर्ती क्षेत्र में युद्ध, घुसपैठ और आक्रमण के लंबे दौर के बाद संपूर्ण भारत को तुर्क, अरब, ईरानी आदि लोगों ने रणक्षेत्र बना दिया और 7वीं सदी से ही भारत का पतन होना शुरू होने लगा, जो आज तक जारी है।  
सम्राट अशोक को अपने विस्तृत साम्राज्य के बेहतर कुशल प्रशासन तथा बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए जाना जाता है। अशोक के काल में बौद्ध धर्म की जड़ें मिस्र, सऊदी अरब, इराक, यूनान से लेकर श्रीलंका और बर्मा, थाईलैंड, चीन आदि क्षेत्र में गहरी जम गई थीं। लेकिन इस्लाम के उदय के बाद हिंसक दौर में सबसे ज्यादा नुकसान बौद्ध धर्म को ही झेलना पड़ा।
अशोक के होने पर एक नजर : चूंकि भारत के एक बहुत बड़े भू-भाग पर मुगलों और संपूर्ण भारत पर अंग्रेजों ने राज किया था। इस दौरान कुछ मुस्लिम राजाओं ने यहां की संस्कृति और सभ्यता को नष्ट करने का भरपूर प्रयास किया। बाद में अंग्रेजों ने यहां के इतिहास के तथ्‍यों के साथ छेड़खानी की और भारतीय इतिहास को जान-बूझकर भ्रमपूर्ण इसलिए बनाया ताकि आने वाली पीढ़ियों को असली इतिहास की जानकारी न मिले और वह इसे असत्य मानने लगे।
हालांकि इतिहास के साथ छेड़खानी करने वालों ने ज्यादातर मौकों पर हिन्दू धर्मग्रंथों और स्मारकों को ही क्षतिग्रस्त किया। उसमें भी उनका ध्यान मथुरा, काशी, अयोध्या और प्रमुख तीर्थस्थलों पर ही ज्यादा रहा जिसके चलते जैन और बौद्ध धर्मग्रंथों में इतिहास सुरक्षित ही नहीं रहा बल्कि आज भी कई ऐसे स्मारक हैं, जो भारतीय गौरव को उजागर करते हैं।
बौद्ध ग्रंथों में यद्यपि महान सम्राट अशोक के संबंध में बड़े विस्तार से उल्लेख मिलता है, लेकिन उनके वर्णन भी एक-दूसरे से भिन्न हैं। माना जाता है कि लेखकों ने अशोकादित्य (समुद्रगुप्त) और गोनंदी अशोक (कश्मीर का राजा) दोनों को मिलाकर एक चक्रवर्ती अशोक की कल्पना कर ली है। इस स्थिति में यह निष्कर्ष निकालना मुश्किल है कि बौद्ध धर्म का प्रचारक देवानांप्रिय अशोक कौन था? सम्राट अशोक को देवानांप्रिय भी कहा जाता था इसीलिए ज्यादातर विद्वानों ने मान लिया कि सम्राट अशोक का काल (269-232) ईस्वी पूर्व गद्दी पर बैठा था जबकि यह गलत है।
अशोक सीरिया के राजा 'एण्टियोकस द्वितीय' और कुछ अन्य यवन राजाओं का समसामयिक था जिनका उल्लेख 'शिलालेख संख्या 8' में है। इससे विदित होता है कि अशोक ने ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी के उत्तरार्ध में राज्य किया, किंतु उसके राज्याभिषेक की सही तारीख का पता नहीं चलता है। अशोक ने 40 वर्ष राज्य किया इसलिए राज्याभिषेक के समय वह युवक ही रहा होगा। 
चीनी विवरण के आधार पर अशोक का काल 850 ईसा पूर्व, सीलोनी विवरण के आधार पर 315 ईसा पूर्व और राजतरंगिणी के अनुसार 1260 ईसा पूर्व।
पौराणिक कालगणना के अनुसार अशोक के राज्य के लिए निकाले गए 1472 से 1436 ईसा पूर्व के काल में और राजतरंगिणी के आधार पर धर्माशोक के लिए निकले राज्यकाल 1448 से 1400 ईसा पूर्व में कुछ-कुछ समानता है जबकि भारत के इतिहास को आधुनिक रूप में लिखने वाले इतिहासकारों द्वारा निकाले गए 265 ईसा पूर्व के काल से कोई समानता ही नहीं है।
उक्त के आधार पर कहा जा सकता है कि वर्तमान इतिहासकारों द्वारा अशोक के संबंध में निर्धारित कालनिर्णय बहुत ही उलझा और अपुष्ट है जबकि भारत पौराणिक आधार पर कालगणना करने वालों और इतिहासकारों के बीच लगभग 1200 वर्ष का अंतर आ जाता है।
चंद्रगुप्त मौर्य, अशोक और कनिष्क की जोन्स आदि पाश्‍चात्य विद्वानों द्वारा निर्धारित तिथियों के संदर्भ में एबी त्यागराज अय्यर की 'इंडियन आर्किटेक्चर' का निम्नलिखित उद्धरण भी ध्यान देने योग्य है- 
'एथेंस में कुछ समय पूर्व एक समाधि मिली थी, उस पर लिखा था कि- 'यहां बौधगया के एक श्रवणाचार्य लेटे हुए हैं। एक शाक्य मुनि को उनके यूनानी शिष्य द्वारा ग्रीक देश ले जाया गया था। समाधि में स्थित शाक्य मुनि की मृत्यु 1000 ईसा पूर्व अंकित है। यदि शाक्य साधु को 1000 ईसा पूर्व के आसपास यूनान ले जाया गया था तो कनिष्क की तिथि कम से कम 1100 ईसा पूर्व और अशोक की 1250 ईसा पूर्व और चंद्रगुप्त मौर्य की 1300 ईसा पूर्व होनी चाहिए और इस मान से भगवान बुद्ध उनके भी पूर्व हुए थे। यदि यह मान लिया जाए तो संपूर्ण इतिहास ही बदल जाएगा। यूनानी साहित्य का सेड्रोकोट्टस चंद्रगुप्त मौर्य सेल्यूकस निकेटर का समकालीन था जिसने 303 ईसा पूर्व में भारत पर आक्रमण किया था, एकदम निराधार और अनर्गल है।' (दि प्लाट इन इंडियन क्रोनोलॉजी पृ. 9)
अंग्रेज काल में नए सिरे से लिखे गए भारतीय इतिहास के कारण ही यह भ्रम की स्थिति उत्पन्न हई है कि भारतीय इतिहास में ठीक-ठीक तिथि निर्धारण नहीं है। भारत में अब तक जो भी सरकार सत्ता में रही उसने भी इसकी कभी चिंता नहीं ‍की कि भारत के इतिहास को खोजा जाए। ज्यादातर भारतीय इतिहासकारों ने विदेशी इतिहासकारों का अनुसरण ही किया है।
  
पहला अशोक : कल्हण की 'राजतरंगिणी' के अनुसार कश्मीर के राजवंशों की लिस्ट में 48वें राजा का नाम अशोक था, जो कि कनिष्क से तीन पीढ़ी पहले था। वह कश्मीर के गोनंद राजवंश का राजा था। इस राजा को धर्माशोक भी कहते थे। अंग्रेज इतिहासकारों ने इसे लेकर भी बहुत भ्रम फैलाने का प्रयास किया। 
दूसरा अशोक : हिन्दू पुराणों के अनुसार मौर्य वंश का तीसरा राजा अशोकवर्धन था, जो चंद्रगुप्त मौर्य का पौत्र और बिंदुसार का पुत्र था। इसी अशोक को महान सम्राट अशोक कहा गया था और इसी ने अशोक स्तंभ बनवाए और इसी ने कलिंग का युद्ध किया था। कलिंग के युद्ध के बाद यही अशोक बौद्ध धर्म का अनुयायी बन गया था।
तीसरा अशोक : गुप्त वंश के दूसरे राजा समुद्रगुप्त का उपनाम अशोकादित्य था। समुद्रगुप्त को अनेक स्थानों पर अशोक ही कहा गया जिसके चलते भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है। समुद्रगुप्त बड़ा ही साहसी और बुद्धिमान राजा था। उसने संपूर्ण भारतवर्ष में बड़े व्यापक स्तर पर विजयी अभियान चलाए थे। अधिकतर इतिहासकार इसे ही महान सम्राट अशोक मानकर भ्रम की स्थिति निर्मित करते हैं।
चौथा अशोक : पुराणों में शिशुनाग वंश के दूसरे राजा का नाम भी अशोक था। वह शिशुनाग का पुत्र था। उसका काला रंग होने के कारण उसे 'काकवर्णा' कहते थे, हालांकि उसे कालाशोक नाम से भी पुकारा जाता था।
 
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Wednesday, August 26, 2015

India's History







भारत का इतिहास

भारत का इतिहास लगभग ५००० साल पुराना माना जाता है। सिन्धु घाटी सभ्यता, जिसका आरंभ काल लगभग ३३०० ईसापूर्व से माना जाता है। इस सभ्यता की लिपि अब तक सफलता पूर्वक पढ़ी नहीं जा सकी है। सिंधु घाटी सभ्यता पाकिस्तान और उससे सटे भारतीय प्रदेशों में फैली थी। पुरातत्त्व प्रमाणों के आधार पर १९०० ईसापूर्व के आसपास इस सभ्यता का अक्स्मात पतन हो गया। १९वी शताब्दी के पाश्चात्य विद्वानों के प्रचलित दृष्टिकोणों के अनुसार आर्यों का एक वर्ग भारतीय उप महाद्वीप की सीमाओं पर २००० ईसा पूर्व के आसपास पहुंचा और पहले पंजाब में बस गया और यही ऋग्वेद की ऋचाओं की रचना की गई। आर्यों द्वारा उत्तर तथा मध्य भारत में एक विकसित सभ्यता का निर्माण किया गया, जिसे वैदिक सभ्यता भी कहते हैं। प्राचीन भारत के इतिहास में वैदिक सभ्यता सबसे प्रारंभिक सभ्यता है जिसका संबंध आर्यों के आगमन से है। इसका नामकरण आर्यों के प्रारम्भिक साहित्य वेदों के नाम पर किया गया है। आर्यों की भाषा संस्कृत थी और धर्म "वैदिक धर्म" या "सनातन धर्म" के नाम से प्रसिद्ध था, बाद में विदेशी आक्रांताओं द्वारा इस धर्म का नाम हिन्दू पड़ा।
वैदिक सभ्यता सरस्वती नदी के तटीय क्षेत्र जिसमें आधुनिक भारत के पंजाब (भारत) और हरियाणा राज्य आते हैं, में विकसित हुई। आम तौर पर अधिकतर विद्वान वैदिक सभ्यता का काल २००० ईसा पूर्व से ६०० ईसा पूर्व के बीच में मानते है, परन्तु नए पुरातत्त्व उत्खननों से मिले अवशेषों में वैदिक सभ्यता से संबंधित कई अवशेष मिले है जिससे कुछ आधुनिक विद्वान यह मानने लगे है कि वैदिक सभ्यता भारत में ही शुरु हुई थी, आर्य भारतीय मूल के ही थे और ऋग्वेद का रचना काल ३००० ईसा पूर्व रहा होगा, क्योंकि आर्यो के भारत में आने का न तो कोई पुरातत्त्व उत्खननों पर अधारित प्रमाण मिला है और न ही डी एन ए अनुसन्धानों से कोई प्रमाण मिला है। हाल ही में भारतीय पुरातत्व परिषद् द्वारा की गयी सरस्वती नदी की खोज से वैदिक सभ्यता, हड़प्पा सभ्यता और आर्यों के बारे में एक नया दृष्टिकोण सामने आया है। हड़प्पा सभ्यता को सिन्धु-सरस्वती सभ्यता नाम दिया है, क्योंकि हड़प्पा सभ्यता की २६०० बस्तियों मे से वर्तमान पाकिस्तान में सिन्धु तट पर मात्र २६५ बस्तियां थीं, जबकि शेष अधिकांश बस्तियां सरस्वती नदी के तट पर मिलती हैं, सरस्वती एक विशाल नदी थी। पहाड़ों को तोड़ती हुई निकलती थी और मैदानों से होती हुई समुद्र में जाकर विलीन हो जाती थी। इसका वर्णन ऋग्वेद में बार-बार आता है, यह आज से ४००० साल पूर्व भूगर्भी बदलाव की वजह से सूख गयी थी।
ईसा पूर्व ७ वीं और शुरूआती ६ वीं शताब्दि सदी में जैन और बौद्ध धर्म सम्प्रदाय लोकप्रिय हुए। अशोक (ईसापूर्व २६५-२४१) इस काल का एक महत्वपूर्ण राजा था जिसका साम्राज्य अफगानिस्तान से मणिपुर तक और तक्षशिला से कर्नाटक तक फैल गया था। पर वो सम्पूर्ण दक्षिण तक नहीं जा सका। दक्षिण में चोल सबसे शक्तिशाली निकले। संगम साहित्य की शुरुआत भी दक्षिण में इसी समय हुई। भगवान गौतम बुद्ध के जीवनकाल में, ईसा पूर्व ७ वीं और शुरूआती ६ वीं शताब्दि के दौरान सोलह बड़ी शक्तियां (महाजनपद) विद्यमान थे। अति महत्‍वपूर्ण गणराज्‍यों में कपिलवस्‍तु के शाक्‍य और वैशाली के लिच्‍छवी गणराज्‍य थे। गणराज्‍यों के अलावा राजतंत्रीय राज्‍य भी थे, जिनमें से कौशाम्‍बी (वत्‍स), मगध, कोशल, कुरु, पान्चाल, चेदि और अवन्ति महत्‍वपूर्ण थे। इन राज्‍यों का शासन ऐसे शक्तिशाली व्‍यक्तियों के पास था, जिन्‍होंने राज्‍य विस्‍तार और पड़ोसी राज्‍यों को अपने में मिलाने की नीति अपना रखी थी। तथापि गणराज्‍यात्‍मक राज्‍यों के तब भी स्‍पष्‍ट संकेत थे जब राजाओं के अधीन राज्‍यों का विस्‍तार हो रहा था। इसके बाद भारत छोटे-छोटे साम्राज्यों में बंट गया।
आठवीं सदी में सिन्ध पर अरबी अधिकार हो गाय। यह इस्लाम का प्रवेश माना जाता है। बारहवीं सदी के अन्त तक दिल्ली की गद्दी पर तुर्क दासों का शासन आ गया जिन्होंने अगले कई सालों तक राज किया। दक्षिण में हिन्दू विजयनगर और गोलकुंडा के राज्य थे। १५५६ में विजय नगर का पतन हो गया। सन् १५२६ में मध्य एशिया से निर्वासित राजकुमार बाबर ने काबुल में पनाह ली और भारत पर आक्रमण किया। उसने मुग़ल वंश की स्थापना की जो अगले ३०० सालों तक चला। इसी समय दक्षिण-पूर्वी तट से पुर्तगाल का समुद्री व्यापार शुरु हो गया था। बाबर का पोता अकबर धार्मिक सहिष्णुता के लिए विख्यात हुआ। उसने हिन्दुओं पर से जज़िया कर हटा लिया। १६५९ में औरंग़ज़ेब ने इसे फ़िर से लागू कर दिया। औरंग़ज़ेब ने कश्मीर में तथा अन्य स्थानों पर हिन्दुओं को बलात मुसलमान बनवाया। उसी समय केन्द्रीय और दक्षिण भारत में शिवाजी के नेतृत्व में मराठे शक्तिशाली हो रहे थे। औरंगज़ेब ने दक्षिण की ओर ध्यान लगाया तो उत्तर में सिखों का उदय हो गया। औरंग़ज़ेब के मरते ही (१७०७) मुगल साम्राज्य बिखर गया। अंग्रेज़ों ने डचों, पुर्तगालियों तथा फ्रांसिसियों को भगाकर भारत पर व्यापार का अधिकार सुनिश्चित किया और १८५७ के एक विद्रोह को कुचलने के बाद सत्ता पर काबिज़ हो गए। भारत को आज़ादी १९४७ में मिली जिसमें महात्मा गाँधी के अहिंसा आधारित आंदोलन का योगदान महत्वपूर्ण था। १९४७ के बाद से भारत में गणतांत्रिक शासन लागू है। आज़ादी के समय ही भारत का विभाजन हुआ जिससे पाकिस्तान का जन्म हुआ और दोनों देशों में कश्मीर सहित अन्य मुद्दों पर तनाव बना हुआ है।

स्रोत

समान्यत विद्वान भारतीय इतिहास को एक संपन्न पर अर्धलिखित इतिहास बताते हैं पर भारतीय इतिहास के कई स्रोत है। सिंधु घाटी की लिपि, अशोक के शिलालेख, हेरोडोटस, फ़ा हियान, ह्वेन सांग, संगम साहित्य, मार्कोपोलो, संस्कृत लेखकों आदि से प्राचीन भारत का इतिहास प्राप्त होता है। मध्यकाल में अल-बेरुनी और उसके बाद दिल्ली सल्तनत के राजाओं की जीवनी भी महत्वपूर्ण है। बाबरनामा, आईन-ए-अकबरी आदि जीवनियाँ हमें उत्तर मध्यकाल के बारे में बताती हैं।
भारत में मानव जीवन का प्राचीनतम प्रमाण १००,००० से ८०,००० वर्ष पूर्व का है।। पाषाण युग (भीमबेटका, मध्य प्रदेश) के चट्टानों पर चित्रों का कालक्रम ४०,००० ई पू से ९००० ई पू माना जाता है। प्रथम स्थायी बस्तियां ने ९००० वर्ष पूर्व स्वरुप लिया। उत्तर पश्चिम में सिन्धु घाटी सभ्यता ७००० ई पू विकसित हुई, जो २६वीं शताब्दी ईसा पूर्व और २०वीं शताब्दी ईसा पूर्व के मध्य अपने चरम पर थी | वैदिक सभ्यता का कालक्रम भी ज्योतिष के विश्लेषण से ४००० ई पू तक जाता है।

राष्ट्र के रुप में उदय

भारत को एक सनातन राष्ट्र माना जाता है क्योंकि यह मानव सभ्यता का पहला राष्ट्र था। श्रीमद्भागवत के पञ्चम स्कन्ध में भारत राष्ट्र की स्थापना का वर्णन आता है।
भारतीय दर्शन के अनुसार सृष्टि उत्पत्ति के पश्चात ब्रह्मा के मानस पुत्र स्वायंभुव मनु ने व्यवस्था सम्भाली। इनके दो पुत्र, प्रियव्रत और उत्तानपाद थे। उत्तानपाद भक्त ध्रुव के पिता थे। इन्हीं प्रियव्रत के दस पुत्र थे। तीन पुत्र बाल्यकाल से ही विरक्त थे। इस कारण प्रियव्रत ने पृथ्वी को सात भागों में विभक्त कर एक-एक भाग प्रत्येक पुत्र को सौंप दिया। इन्हीं में से एक थे आग्नीध्र जिन्हें जम्बूद्वीप का शासन कार्य सौंपा गया। वृद्धावस्था में आग्नीध्र ने अपने नौ पुत्रों को जम्बूद्वीप के विभिन्न नौ स्थानों का शासन दायित्व सौंपा। इन नौ पुत्रों में सबसे बड़े थे नाभि जिन्हें हिमवर्ष का भू-भाग मिला। इन्होंने हिमवर्ष को स्वयं के नाम अजनाभ से जोड़कर अजनाभवर्ष प्रचारित किया। यह हिमवर्ष या अजनाभवर्ष ही प्राचीन भारत देश था। राजा नाभि के पुत्र थे ऋषभ। ऋषभदेव के सौ पुत्रों में भरत ज्येष्ठ एवं सबसे गुणवान थे। ऋषभदेव ने वानप्रस्थ लेने पर उन्हें राजपाट सौंप दिया। पहले भारतवर्ष का नाम ॠषभदेव के पिता नाभिराज के नाम पर अजनाभवर्ष प्रसिद्ध था। भरत के नाम से ही लोग अजनाभखण्ड को भारतवर्ष कहने लगे।

प्राचीन भारत

१००० ई पू के पश्चात १६ महाजनपद उत्तर भारत में मिलते हैं। ५०० ईसवी पूर्व के बाद, कई स्वतंत्र राज्य बन गए| उत्तर में मौर्य वंश, जिसमें चन्द्रगुप्त मौर्य और अशोक सम्मिलित थे, ने भारत के सांस्कृतिक पटल पर उल्लेखनीय छाप छोडी | १८० ईसवी के आरम्भ से, मध्य एशिया से कई आक्रमण हुए, जिनके परिणामस्वरूप उत्तरी भारतीय उपमहाद्वीप में इंडो-ग्रीक, इंडो-स्किथिअन, इंडो-पार्थियन और अंततः कुषाण राजवंश स्थापित हुए | तीसरी शताब्दी के आगे का समय जब भारत पर गुप्त वंश का शासन था, भारत का "स्वर्णिम काल" कहलाया| दक्षिण भारत में भिन्न-भिन्न समयकाल में कई राजवंश चालुक्य, चेर, चोल, कदम्ब, पल्लव तथा पांड्य चले | विज्ञान, कला, साहित्य, गणित, खगोल शास्त्र, प्राचीन प्रौद्योगिकी, धर्म, तथा दर्शन इन्हीं राजाओं के शासनकाल में फ़ले-फ़ूले |

मध्यकालीन भारत

12वीं शताब्दी के प्रारंभ में, भारत पर इस्लामी आक्रमणों के पश्चात, उत्तरी व केन्द्रीय भारत का अधिकांश भाग दिल्ली सल्तनत के शासनाधीन हो गया; और बाद में, अधिकांश उपमहाद्वीप मुगल वंश के अधीन। दक्षिण भारत में विजयनगर साम्राज्य शक्तिशाली निकला। हालांकि, विशेषतः तुलनात्मक रूप से, संरक्षित दक्षिण में, अनेक राज्य शेष रहे अथवा अस्तित्व में आये।
17वीं शताब्दी के मध्यकाल में पुर्तगाल, डच, फ्रांस, ब्रिटेन सहित अनेकों युरोपीय देशों, जो कि भारत से व्यापार करने के इच्छुक थे, उन्होनें देश में स्थापित शासित प्रदेश, जो कि आपस में युद्ध करने में व्यस्त थे, का लाभ प्राप्त किया। अंग्रेज दुसरे देशों से व्यापार के इच्छुक लोगों को रोकने में सफल रहे और १८४० ई तक लगभग संपूर्ण देश पर शासन करने में सफल हुए। १८५७ ई में ब्रिटिश इस्ट इंडिया कम्पनी के विरुद्ध असफल विद्रोह, जो कि भारतीय स्वतन्त्रता के प्रथम संग्राम से जाना जाता है, के बाद भारत का अधिकांश भाग सीधे अंग्रेजी शासन के प्रशासनिक नियंत्रण में आ गया।

आधुनिक भारत

बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में अंग्रेजी शासन से स्वतंत्रता प्राप्ति के लिये संघर्ष चला। इस संघर्ष के परिणामस्वरूप 15 अगस्त, 1947 ई को सफल हुआ जब भारत ने अंग्रेजी शासन से स्वतंत्रता प्राप्त की, मगर देश को विभाजन कर दिया गया। तदुपरान्त 26 जनवरी, 1950 ई को भारत एक गणराज्य बना।